Saturday, October 4, 2014

डूबते को तिनके का सहारा

एक पेड़ था
छातों भरा आकाश में-
मुझे क्या छाँव देगा
मुझे क्या शीतलता देगा
दुख भरी दुपहरी में?
बेकार का पेड़ है—
पहले मैं सोचता था
एक दिन-
मैं गुजर रहा था
भरी दुपहरी में
बेहाल था, पसीने से तर-बतर
कूछ सूझ नहीं रहा था-
उसी छतरी भरी छाँव में—
तब समझ में आया-
डूबते को तिनके का सहारा!!

           गुलाब चंद जैसल