डूबते को तिनके का सहारा
एक पेड़ था
छातों भरा आकाश में-
मुझे क्या छाँव देगा
मुझे क्या शीतलता
देगा
दुख भरी दुपहरी में?
बेकार का पेड़ है—
पहले मैं सोचता था।
एक दिन-
मैं गुजर रहा था
भरी दुपहरी में
बेहाल था, पसीने से तर-बतर
कूछ सूझ नहीं रहा था-
उसी छतरी भरी छाँव में—
तब समझ में आया-
डूबते को तिनके का सहारा!!
गुलाब चंद जैसल
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